मंगलवार, 18 अगस्त 2009

यादों में बचपन

शिशिर के घर के आगे योगेश का घर था उसके पापा शहर के बडे सेठ थे मैं जब उस के घर जाती थी उसे बुलाने ,अक्सर उसकी बहन मिलती थी चुन्नी दी ,उसकी मम्मी बहुत कम मिलती थी ,पूछो तो पता लगता वो मेहदी घाटमपुर गयी हे जब योगेश रिक्शे में नही होता तो हमारी बातो का विषय उसकी मम्मी होती जो किसी भूत से परेशान थी .हम डर के मारे उनके घर कुछ नही खाते थे .लेकिन जाने क्यों योगेश कि मुझसे खूब दोस्ती थी । हमारी एक परिचित सिम्मी दी अक्सर मेरी शादी योगेश से करवाने कि बात करती थी तब मैं कक्षा तृतीय में पढ़ती थी ।
अरे ! जीजी की शादी तो भूल ही गयी! कुछ-कुछ याद है। तब पांच साल की ही थी।तिलक के एकदिन पहले की बात है। मम्मी बहुत परेशान थी। वे मुझे लेकर पीडब्लूडी गयी। वहां मेरे मौसाजी रहते थे हमारी असली मौसी मर चुकी थी फिर भी उनके यहाँ आना जाना था ।मम्मी ने उन से कुछ पैसे देने कि बात कही उन्होंने माँ को मना कर दिया मम्मी रो पड़ी और नाराज हो कर चच्चा जी कि समाधि पर गई। चच्चा जी हमारे गुरु जी हे। मम्मी बताती थी कि मेरे पैदा होने पर उन्होंने आर्शीवाद के रूप में एक रुपया माँ को दिया था मम्मी कहतीथी कि उस रूपये में बडी बरकत थी तब से माँ का बक्सा कभी खाली नही हुआ ।पिछली 8 अक्टूबर को मम्मी के चले जाने के बाद मैंने माँ का सारा सामान खोज लिया लेकिन वो रे रूपया कही नही मिला शायद बरकत माँ के साथ ही चली गयी.

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