मंगलवार, 25 अगस्त 2009

पता नही क्यों

शुभु,
ये मेरी त्रासदी रही है कि जब भी मैं कुछ हुलस के साथ करती हूँ , जिसके लिए करती हूँ , उस तक नहीं पहुँचता, जिस तक उसे जाना था, जिसका पावना था। २३ तारीख को मैंने तुम्हें एक चिठ्ठी लिखी थी। तुम तक नहीं पहुँची । पता नहीं क्यों ऐसा ही होता है , अक्सर। तुमने सागर का जिक्र किया था----अब बताओ। सोचो तो जरा, वो कितनी पटरियों से गुजरे और मैं ? जब मुझ से गुजरते थे तब वो मुझे खैरात नही देते थे क्या ? और जिस दिन की तुम बात कर रही हो कौन सी ट्रेन गुज़री और मैं कितना कांपी--- तुम्हें ही नहीं , तुम्हारे सागर को भी पता हैं । मैंने उनकी दी हर चीज को हमेशा किस ढंग से ग्रहण किया--- उनसे बेहतर तो मैं भी नहीं जानती---और वो छोटे बच्चों की तरह से तकादा कर सकते हैं। वे कहते हैं मैंने उन्हें हाशिये पर डाल दिया है। तो फिर कौन हैं मेरे मुख्य पृष्ठ पर ? तुम हो नहीं , राहुल है नही---फिर कौन ? राहुल मेरी मजबूरी हैं, तुम अधबना सपना। सागर के बिना मैं कुछ नहीं हूँ । मैं उन्हें कभी यकीन नहीं दिला सकती । चाहती भी नहीं। ये मेरा सच है। उनका वो जाने। वक्त तो मैं तुम्हें भी नहीं देती--- और राहुल के सामने दूँगी भी नहीं। मेरी प्राथमिकता राहुल हैं। सागर मेरा मैं और तुम मेरी इच्छा। ये बात समझ लेना प्राथमिकता कोई ब्यक्ति कभी नहीं होता । मैंने तो सागर से कभी दावा नहीं किया---ये मेरा वक्त है--- ये मेरा पावना---! किस से नहीं लड़ी मैं ? किसे नहीं रुलाया ? कितना नहीं रोई ख़ुद ? लेकिन सागर से मुझे कभी शिकायत रही तो हमेशा उनकी डिग्निटी को लेकर। लेकिन सागर किसी के सामने मेरा मान नहीं रखते। तुम्हारे सामने भी मुझे ही रुसवा करते हैं। जरा पूछो कि अभी किस बात पर नाराज हैं ? मुझे पता है वजह भूल चुके होंगे। ----और अब उनके पास कोई नया बहाना तैयार होगा। तुमने पूछा था प्यार क्या होता है तो ज्यादा मैं जानती नहीं लेकिन जितना जानती हूँ उसका लब्बो-लुआब सागर है। तुम भी जानती हो और सागर भी कि मुझे राहुल से प्यार नहीं। ग़लत बात है लेकिन साथ ही सच भी। और इसमे राहुल की या मेरी कोई गलती नहीं। उनका पहला प्यार लवली है । वो उसके अलावा किसी को प्यार नहीं कर सकते तो मैं सागर के अलावा किसी से कैसे प्यार कर सकती हूँ। सागर से ये गलती जरुर हुई है कि वे सुपात्र नहीं चुन पाए। सच कह रही हूँ --- मैंने बहुत कोशिश की थी कि उनके मनमाफिक बन सकूं। लेकिन फ़िर वही--- कोई ख्वाव पूरा क्यों हो ? मुझ में इतनी शिद्दत किसी बात के लिए नहीं रही।
कैरिअर ,शादी , जिंदगी के सारे अहम् फैसले उनकी मर्जी के। फिर भी उन्हें मुझ से बहुत शिकायतें हैं। मैं सच्ची शर्मिंदा हूँ ---- समझ ही नही आता गलती कहाँ हो गयी ? नहीं जानती।
- ममा

1 टिप्पणी:

  1. कुछ बना, कुछ अधबना सच लेकर अपने-अपने हिस्से का कौन-सा ऐसा दुःख है, जो जलाता भी है और तृप्त भी करता है कि कुछ खोकर भी पाने का उपालंभ देता है...

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