शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

तुम्हारे लिए

शुभू
पता है पहली बार ये कोशिश सागर के लिए की थी मैंने , उन्होने कहा था ,फिर एक और कोशिश लेकिन जाने क्यों मेरी कोशिशें पूरी नही होती ।मैंने आज तक कोई कम पूरा नही किया कोई प्यार पूरा नही, समर्पण पूरा नही,सृजन पूरा नही .पहले तुम्हारा भाई फिर दीदी सब चार कदम ,दो कदम साथ रहे लेकिन सफर भी अधूरा। इसीलिए तुम्हे महसूसने में डर रही थी .सागर से में कितनी भी नाराज हो जाऊ ,पर उनका विश्वास मुझमे बोलता है .सो अब लग रहा हे कि तुम्हारे साथ ये सफ़र भी पूरा हो जायेगा ,और ये उम्र से लम्बा ख़त भी ख़त भी।
शुभो सोचा था कि तुम से सब कहूँगी पर नहीं, तुम इतनी समझदार नही कि मेरे और सागर के रिश्ते को समझ पाओ --- जिसे अब तक मैं और सागर नही समझ पाए।सागर मेरे लिए प्रेत नही ब्रह्मराक्षस हैं न मैं उनसे मुक्त हो सकती हूँ न वे मुझसे । एक बात और समझ लो मुझे अपने से बडो के साथ बेलिहाज होना पसंद नही .सागर के लिए तो मैंने अपनी मां को खूब रुलाया अब तुम वो दोहराने की कोशिश मत करो .सोचा था अज शुरू से कोशिश करुगी लेकिन नही तुम इस लायक नही हो .जानती हो राहुल की किसी बात की चिंता मुझे क्यो नही होती ?क्योकि सागर हें.वो मुझसे बोले या न बोले तुम्हे बोलने की जरुरत नही समझ गई ?

1 टिप्पणी: