शनिवार, 15 अगस्त 2009

दाखिला

बडे भइया शिशु मन्दिर ले दकिले के लिए वहन दो ही अच्छे स्कूल थे एक मिशन ,एक शिशु मन्दिर .पापा आर .एस.एस के सक्रिय कार्यकर्ता थे सो शिशु मन्दिर ही मेरा स्कूल हो सकता था .बडे भइया को मेरी जन्मतिथि नही मालूम थी इसलिए वो बदल गई और मैंने जनवरी की जगह जुलाई में जन्म लिया एक पुनर्जन्म .वो संस्कृति अलग थी ,भइया-बहन ,शिशु सभा ,उत्तिष्ठ -उपविष ,लघुशंका ,दीर्धशंका आदि-आदि । जीजी मुझे तैयार कर के स्कूल भेजती स्किर्ट की प्लेट ऐसी जैसे ब्लड की धार .तब बहुत प्यारी लगती थी मैं साधना कट बाल , साफ-सुथरी ड्रेस ,पिन लगा हुआ रुमाल ,मैं रिक्शे से जाती थी रिक्शे वालें भाईसाब का नाम अल्लारक्खा था बहुत अच्छे थे वो किसी भइया -बहन से गुस्सा नही होते थे .मुझे लेने के बाद हम स्टेशन की तरफ़ जाते थे वह से आते थे प्रेरणा ,प्रसन्न और उनके चचेरे भाई आशीस और शिशिर.पता नही क्यो शिशिर की मम्मी उसे रोज रुला कर क्यो भेजती थी ,नन्हा प्यारा सा लड़का जार -जार रोता हुआ आता था और मेरे पास बैठ जाता था .मैं घर में सबसे छोटी थी सो मुझे बड़ी बनने का बड़ा शौक था .आब तो वही रोने वाला लड़का शिशिर डॉक्टर बन गया .उसने मुंबई से पैथोलोजी में ऍम .डी। की डिग्री ली है .मैं उसे जानती हू लेकिन शायद वो मुझे नही पहचानता

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी बचपन की यादॊ मे, मुझे भी अपना बचपन याद आ गया. ये
    दिन होते ही हॆ,कभी न भूलने वाले,लिखती रहिये,शुभकामनायें

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  2. अतीत की यादो का अपना एक मजा है।
    आपने अपने दिल की बात बडे ही सुन्दर भाव से लिखी है।
    मेरी और से हार्दीक मगलकामनाऍ।

    आभार
    हे प्रभू यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर

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