शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

उसके आगे

विनीत भैया का स्कूल एकदम आदिम टाइप का था , कोई यूनीफोर्म नही , एक तरफ तालाब, जहाँ वे बैठते थे वो हरी घास का एक टीला था ,उनकी कक्षा के पास एक शिव मंदिर था ,पुराना सा उसके बारे में खूब कहानिया चर्चित थी ,झाँसी कि रानी उसी से होकर आयी थी ,मंदिर कि सुरंग का एक रास्ता झाँसी जाता था एक कालपी और एक महोबा , जाने क्यों मुझे रहस्यों कि बातें हमेशा अच्छी लगती थी हमने मंदिर में घुस के देखा ,वह कोई रास्ता नही दिखा ,वो एक कमरे के जैसा था बीच में एक शिवलिंग चारों और घुप्प अँधेरा हमने टॉर्च कि रौशनी से दीवारें देखि पर कुछ दिखा नही . बाद में वो मंदिर सूअरों का जानना वार्ड बन गया .अब क्या हाल है ?पता नही कब से उस और जाना ही नही हुआ .भैया के एक टीचर अक्सर कक्षा में झूम बराबर झूम शराबी गाना सुनाते थे ,भैया के दिमाग में मास्साब का गाना जम के बैठा था ,पिछले साल भैया किसी के घर में बैठ के ये बात बता रहे थे एक सज्जन उठ के बोले उन मास्साब को पहचान जाओगे?.रिश्ते कितने नाजुक तारों से जुडें होते हे , भैया ने तुंरत उठ के उन के पांव छुए

सैट दिन मैं विनीत भैया के स्कूल गई मैं जिद करती कि मैं भिया के पास बैठुगी ,रोने लगती और वो स्कूल अच्छा मनने के कारन मेरा दाखिला शिशु मंदिर में कराया जाना था ,पापा में अजीब सी वीतरागी थी सो

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