शनिवार, 22 अगस्त 2009

नहीं पता

जीजी की शादी की बात चल रही थी। उनकी शादी के कुछ दृश्य मुझे याद हैं , जीजी की शादी में केटरिंग का काम मोदक मामा देख रहे थे। उनके सजाये सलाद ऐसे अद्भुत थे कि बस पूछो ही मत--- लौकी की मछली , प्याज के फूल , मूली की लड़की , कद्दू का रथ और भी जाने क्या क्या ? बारात मैं गावं के लोग ज्यादा थे ----- वे हैरान थे कि ये चीजें देखने के लिए थी या खाने के लिए । जीजी खुराना भाईसाहब के बाहर वाले कमरे में तैयार हुई थी। उन्होंने आशा भाभी की सारी पहनी थी--- हरी और लाल बनारसी ब्रासो की साडी थी। वो मुझे बहुत पसंद थी। मैं कहती थी मैं भी अपनी शादी मैं यही सारी पहनूगी जीजी बहुत सुन्दर लग रही थी। ये 1978 की घटना है तब मैं मात्र 5 साल की थी । उस वक्त के हिसाब से शादी बहुत शानदार हुई थी। जीजाजी के फूफाजी जो शहर के बडे नामी वकील थे, कहते थे कि हम नही जानते थे कि एक मास्टर भी इतनी अच्छी शादी कर सकता है। पापा डिग्री कालेज में प्राध्यापक थे। सच बताऊ तो ये क्रेडिट मम्मी का था , सुबह मैं जिद पर अड़ गई कि मैं तो जीजी के साथ जाउंगी । फिर मुझे जीजी को दी जा रही चीजो में से कुछ दे के बहला दिया गया .शादी के बाद मैं जीजी के घर चली जाती और जीजी जीजाजी के बीच में सो जाती थी जीजी मुझे सुलाने के चक्कर में कई बार जल्दी सो जाती और फ़िर शायद डांट खाती थी मुझे । घर वापस भेज दिया गया अब जब जीजी घर आई मैं बुक्का फाड़ के रोने लगी कि मैं जीजी के संग जाउगी--- सब ने समझाया कि तुम जाती हो तो जीजाजी गुस्सा हो जाते है। तुम उनके संग सोती हो कभी पेट में दर्द कभी नींद जीजाजी जीजी से गुस्सा होते है---- तो मैंने जीजी से कहा , जीजी बस तुम मुझे ले चलो मैं तुम्हारे संग नही सोऊँगी ---मैं दिन्नु जीजाजी के संग सो जाउंगी तब तो सब खूब हँसे ही आगे भी कभी कभी ये बात करके लोग हंस लेते है । मेरी शादी के वक्त भी तो ऐसा ही हुआ बस पात्र बदल गए ---- शादी मेरी थी, और गुड्डो जिद कर रही थी । इतिहास ख़ुद को हमेशा दोहराता है। यही उसकी नियति है । उनकी ससुराल के तीन कमरे पक्के थे ----पत्थर , आंगन और एक लंबा कच्चा कमरा जिसमे भूसा भरा रहता था--- हम उसमे कच्चे आम दाल देते थे जो तीन दिन में पक जाते थे ।

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